नई दिल्ली: “राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर‘ की कविताएं भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय देश के कोने-कोने में अत्यन्त गौरव के साथ पढ़ी और गायी जाती थीं. उनकी ओजस्वी वाणी लोगों को आजादी की लड़ाई में सर्वस्व न्योछावर करने के लिए प्रेरित करती थी. स्वतंत्रता के बाद उन्होंने अपनी रचनाओं द्वारा नये भारत के निर्माण की प्रेरणा प्रदान की.” पूर्व केंद्रीय मंत्री डा सत्यनारायण जटिया ने दिनकर की 50वीं पुण्यतिथि पर कमानी सभागार में ‘रश्मिरथी पर्व‘ को संबोधित करते हुए यह बात कही. उन्होंने कहा कि दिनकर की कालजयी रचनाओं में रश्मिरथी, हुंकार, कुरुक्षेत्र, उर्वशी, परशुराम की प्रतीक्षा एवं संस्कृति के चार अध्याय हैं, जिन पर उन्हें साहित्य अकादमी, हिंदी साहित्य सम्मेलन और भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं. उन्होंने भारतीय संसद के सदस्य, भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति तथा भारत सरकार के प्रथम हिंदी सलाहकार के रूप में शिक्षा, भाषा तथा साहित्य जगत में अपना अप्रतिम स्थान बनाया है. राष्ट्रकवि दिनकर राष्ट्रीय चेतना, स्वाभिमान एवं संवेदना के ओजस्वी कवि थे. आज भी उनकी कृतियों के अध्ययन और मनन से अन्याय एवं शोषण के खिलाफ संघर्ष की अद्भुत शक्ति मिलती है. डा जटिया ने कहा कि ‘रश्मिरथी‘ राष्ट्रकवि दिनकर की कालजयी कृति है, जिसमें सामाजिक न्याय की भावना को नई भाषा-नई अभिव्यक्ति दी गई है, जिसमें दलित, वंचित एवं उपेक्षित समाज के लिए एक संदेश है कि प्रतिभा किसी जाति विशेष की मोहताज नहीं होती है. ‘रश्मिरथी‘ का रूसी भाषा में अनुवाद करने वाली विदुषी एसवी त्रुब्निकोवा ने राष्ट्रकवि दिनकर को मुख्यतः: ‘सामाजिक न्याय का कवि‘ माना है. कवि हृदय भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी ने ‘रश्मिरथी ‘ को सामाजिक न्याय का जिंदा दस्तावेज कहा. विदित हो रश्मिरथी में सूर्यपुत्र दानवीर कर्ण का जीवन चरित एवं संवाद है, जो पूरे विश्व में रामचरित मानस के बाद सर्वाधिक लोकप्रिय काव्य है. रश्मिरथी महाभारत पर आधारित है.
डा जटिया ने कहा कि राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर‘ स्मृति न्यास विगत तीन दशकों से साहित्यिक, सांस्कृतिक , सामाजिक उत्थान हेतु दिनकर जी के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए कटिबद्ध और समर्पित है. उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विकास कुमार सिंह ने कहा कि राष्ट्रकवि दिनकर की रचनाओं से समरस समाज का निर्माण हुआ है. दिनकर की कविता आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा का काम कर रही है. जब-जब लोगों में हताशा का भाव हो तो दिनकर की कोई रचना पढ़ लें, पूरे शरीर में ऊर्जा का संचार हो जाता है. सिंह ने कहा कि हर युग में दिनकर की रचनाएं प्रासंगिक रहेंगी. जलपुरुष डा राजेन्द्र सिंह ने कहा कि राष्ट्रकवि दिनकर की पंक्ति ‘मानव जब जोर लगाता है, पत्थर भी पानी बन जाता है‘ लोगों में पूरा जोश भर देता है कि मनुष्य बहुत शक्तिशाली है और सकारात्मक संकल्प ले तो पत्थर को भी पानी बना सकता है. चंबल जो पथरीला क्षेत्र है और वहां के लोगों के सामने लाचारी, मजदूरी थी, जिससे वह गलत रास्ते पर चले गये थे और वह अपना जीवन एवं समाज को तबाह कर दिये थे. सिंह ने कहा कि जब वहां के लोगों ने इन पंक्तियों से प्रभावित होकर संकल्प लिया एवं पूरे जोर से सामूहिक प्रयास किया, तो चंबल की पथरीली चार नदियां पुनर्जीवित हो गईं और निर्मल एवं अविरल बहने लगीं, जिससे समाज पानीदार हो गया और आज सभी लोग खुशहाल हैं. दिनकर अध्येता अभय कुमार सिंह ने कहा कि दिनकर सार्वभौम सत्य के कवि हैं, इसका वियोजन उसके शब्द शिल्प में दिखाई पड़ता है. शब्द ऐसी श्रृंखला में आते हैं, जिसमें निश्चित का आशय अनिश्चित से जुड़ता दिखाई पड़ता है. भारतीय साहित्य वागमंय, चाहे वह वैदिक साहित्य हो या पौराणिक साहित्य, उसमें प्रश्न और उत्तर की एक श्रृंखला होती है. दिनकर भी कुरुक्षेत्र में उस प्रश्न को उठाये चलते हैं. वह कौन रोता है, इतिहास के अध्याय पर इस प्रश्न का उत्तर और उत्तर के बीच उठते फिर प्रश्न, पूरे काव्य की रचना करती है. पाठक उस प्रश्न और उत्तर के बीच में अपनी संवेदना को टटोलता है, उसमें से कुछ समाधान लेने की कोशिश करता है, फिर कुछ प्रश्नों में उलझ जाता है. मानवीय चिंतन का यही आधार है और रचना के कालजयी होने का कारण. इस प्रकार विराट फलक की अभिव्यक्ति देने वाला कवि सार्वभौम का कवि बन जाता है, उसमें संपूर्ण मानवता की संवेदना है, इसीलिए दिनकर विश्व कवि है.
राष्ट्रकवि दिनकर स्मृति न्यास का यह कार्य जो अपने आप में अनूठा है और दिनकर साहित्य के प्रसार में उठाया हुआ एक अतुलनीय प्रयास है, इस कड़ी में न्यास ने देश के उन महापुरुषों द्वारा दी गई प्ररेणा की लौ को जगाये रखने में भी प्रयासरत है जिनकी वाणी में सत्य की अग्नि रही है, उसमें स्वामी विवेकानंद, बाल गंगाधर तिलक, रवीन्द्रनाथ टैगोर भी शामिल हैं. इस पर नाट्य मंचन काव्य विवेचना एवं अन्य रचनाओं पर आयोजन, गोष्ठियां एवं उनके पुस्तकों का प्रकाशन शामिल है. पंडित जनार्दन ने कहा कि राष्ट्रकवि दिनकर भारत के लोकप्रिय कवि थे, उनकी रचनाओं से समाज का समस्त कल्याण हो रहा है. दिनकर महान शब्द पुत्र थे, जिनसे राष्ट्र का गौरव बढ़ा है. राष्ट्रकवि के रूप में उन्होंने कई कालजयी रचनाएं समाज को दी हैं. डा यश गुलाटी ने कहा कि राष्ट्रकवि दिनकर की रश्मिरथी रचना बेहद लोकप्रिय एवं उपयोगी है. इस रचना को पढ़ने से चेतना का संचार होता है और सकारात्मक वातावरण बनाने में मदद होता है. कर्ण के माध्यम से समरस समाज का निर्माण ही दिनकर का मुख्य उद्देश्य था. मैं दिनकर साहित्य को जन-जन तक पहुंचाने में सकारात्मक एवं रचनात्मक प्रयास करता रहूंगा. दिनकर के पौत्र ऋत्विक उदयन ने कहा प्रकाश को प्रकाश, प्रकाश से मिलता है और उस प्रकाश को प्रकाश दिनकर से मिलता है. तो इस तर्क से मैं दिनकर हुआ. और उस दिन उन्होंने अपना उपनाम दिनकर रख लिया. बाबा के पिताजी का नाम रवि था. तो कभी कभी यह भी कहते थे कि रवि का पुत्र दिनकर हुआ. राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर‘ स्मृति न्यास के अध्यक्ष नीरज कुमार ने कहा कि दिनकर आग और राग के कवि थे. दिनकर के विचारों को जन-जन तक तक पहुंचाने का कार्य न्यास पिछले 33 वर्षों से अनवरत कर रहा है. न्यास राष्ट्रकवि दिनकर की 50वीं पुण्यतिथि के पावन अवसर पर एक वर्ष पूरे देश के 50 महत्त्वपूर्ण स्थानों पर ‘रश्मिरथी पर्व‘ के रूप में भव्य एवं प्रभावी कार्यक्रम करेगा, जो एक श्रृंखलाबद्ध योजना है, जिसमें दिनकर साहित्य का प्रसार बहुत ही तकनीकी एवं सरल तरीके से किया जायेगा. दिनकर साहित्य को सर्वसुलभ हर स्तर पर किया जायेगा.
 
											
				 
			
											
				 
									 
				 
				 
				 
				